धूप बहुत है मौसम जल-थल भेजो ना
बाबा मेरे नाम का बादल भेजो ना
मोल्सरी की शाख़ों पर भी दिये जलें
शाख़ों का केसरया आँचल भेजो ना
नन्ही मुन्नी सब चेहकारें कहाँ गईं
मोरों के पेरों की पायल भेजो ना
बस्ती बस्ती देहशत किसने बो दी है
गलियों बाज़ारों की हलचल भेजो ना
सारे मौसम एक उमस के आदी हैं
छाँव की ख़ुश्बू, धूप का संदल भेजो ना
मैं बस्ती में आख़िर किस से बात करूँ
मेरे जैसा कोई पागल भेजो ना