जब से सर्दी आ गई
धूप मन को भा गई ।
पेड़ सारे काँपते हैं
पात से तन ढाँपते हैं
धुंध नभ में छा गई ।
थरथराता ताल का जल
सिहरता है चाँद चंचल
रैन चिड़िया गा गई ।
अलाव बातों में लगे हैं
रात भर सारे जगे हैं
सुबह फिर शरमा गई ।
जब से सर्दी आ गई
धूप मन को भा गई ।
पेड़ सारे काँपते हैं
पात से तन ढाँपते हैं
धुंध नभ में छा गई ।
थरथराता ताल का जल
सिहरता है चाँद चंचल
रैन चिड़िया गा गई ।
अलाव बातों में लगे हैं
रात भर सारे जगे हैं
सुबह फिर शरमा गई ।