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धूप में कहीं खो गया है मनुष्य / केदारनाथ अग्रवाल
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धूप में कहीं खो गया है मनुष्य
उसको तलाश कर रही है
उसकी पीढ़ी,
व्यर्थ बदनाम हो गया है
अंधकार।
रचनाकाल: १४-०९-१९६५