और कुछ दर्द चुरा लूँ, तो चलूँ,
आँसुओं को समझा लूँ, तो चलूँ ।
दर्द बे-ठौर हो गए हैं जो
उन्हें हृदय में बसा लूँ, तो चलूँ ।
गुलाब की सुगंध-सा बह कर,
भोर का मन महका दूँ, तो चलूँ ।
ठहरो, किरनों की गठरी को,
ठीक से सिर पे उठा लूँ, तो चलूँ ।
ज़िन्दगी यह तपती दोपहरी,
धूप में छाँव लुटा दूँ, तो चलूँ ।
जिसे डुबा न सके साँझ कोई,
ऐसा इक सूर्य उगा लूँ, तो चलूँ ।