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धूप में छाँव लुटा दूँ तो चलूँ / लाला जगदलपुरी

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और कुछ दर्द चुरा लूँ, तो चलूँ,
आँसुओं को समझा लूँ, तो चलूँ ।

दर्द बे-ठौर हो गए हैं जो
उन्हें हृदय में बसा लूँ, तो चलूँ ।

गुलाब की सुगंध-सा बह कर,
भोर का मन महका दूँ, तो चलूँ ।

ठहरो, किरनों की गठरी को,
ठीक से सिर पे उठा लूँ, तो चलूँ ।

ज़िन्दगी यह तपती दोपहरी,
धूप में छाँव लुटा दूँ, तो चलूँ ।

जिसे डुबा न सके साँझ कोई,
ऐसा इक सूर्य उगा लूँ, तो चलूँ ।