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धूरि चढ़ै नभ पौन प्रसँग तें कीच भई जल संगति पाई / दास

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धूरि चढ़ै नभ पौन प्रसँग तें कीच भई जल संगति पाई ।
फूल मिलैँ नृप पै पहुँचैं कृमि काठन सँग अनेक बिथाई ।
चँदन सँग कुठार सुगंध ह्वै नीच प्रसंग लहै करुआई ।
दासजू देखौ सही सब ठौरन संगति को गुन दोष न जाई ।


दास का यह दुर्लभ छन्द श्री राजुल मेहरोत्रा के संग्रह से उपलब्ध हुआ है।