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धूल की आँधी, सफ़ेद पड़ी चाँदनी और एक अजाने नायक की कथा / समीर ताँती

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जब अकेला चलता होता है
तभी याद आता है।
कई साल पहले
ऐसी एक रात
उसके जीवन में आई थी
कि वह पीड़ा से विह्वल हुआ था
और उसके बाद ही
क़दम रखे थे
अज्ञात के अन्तहीन पथ पर।
याद आता है तो कभी-कभी
उसे लगता है
वह एक अजाना नायक है।
धूल ने रात को
आलिंगनबद्ध कर रखा था
धूल की उत्तेजना से
रोमांचित हुई थी रात,
नीरवता के वक्ष में
शहर ऐसा लगा था
जैसा खुदाई में निकला नगर कोई।
शायद सब कुछ ही अजाना है
केवल परिचय भुलाए रहता है।
धूल नहीं है यह,
तारों की चिता-भस्म है
आत्मघाती हज़ार तारों
की अस्थियों की राख
हवा ले आती है,
वहन करने वाली वायु,
दुःख में बराबर की हिस्सेदार,
शायद विस्मृति ही उसके लिए समय है।
कितना पुराना आलोड़न
घुला हुआ है शून्य में
कि हाहाकार की आँधी चलती है
चिताभस्म वाली धूल उड़ती है
काला सफ़ेद हो जाता है
सफ़ेदी ढक लेती है रास्ते
रास्तों पर मृत्यु बजाती सीटी।
कितनी बातें मन ही मन
जी की तकलीफ़ें गोपन।
ज़मीन से उड़ती है
पर ज़मीन नहीं है। देह से ही
उड़ती है पर देह नहीं है। पानी से ही
उड़ती है पर पानी नहीं है।
देह का बन्धन तोड़ मन बाहर निकलना चाहे
लोकोत्तर को छूने के निमित्त।
आकुलता को भिगोना चाहती विरक्ति।
वह जो चन्द्रकला का प्रेमी यायावर
ढूँढ़ता फिरता चाँदनी,
ॠतुमती चन्द्रकला बीमार है
मुख की आभा फीकी पड़ गई है,
पीलापन लिये सफ़ेदी जैसी,
सर्वनाश की पूर्वसूचना;
रात का पथिक देखता है
चाँदनी में उजली हो उठी पृथ्वी को,
मिलने में भी आनन्द न हो तो
ढूँढ़ने में क्या होगा!
श्वेताभ पीतिमा में रोते हैं
मृतक सब,
निर्दोष लोग गिरफ़्तार होते हैं,
दो ही गोलियों में
बाहर छिटक पड़ती हैं दो आँखें,
अचेत, अर्धनग्न युवती के ऊपर से
गुज़रता है चन्द्ररथ।
वह चलता रहता है अकेला,
निर्विकार, अनासक्त।
साफ़ आसमान पर
शून्य का बिस्तर है,
आराम करती है वहाँ
रतिहीन चन्द्रकला,
चाँदनी में ठण्डी हुई
सारी यौन उत्तेजना,
ख़ून पानी होता जाता है,
प्यास नहीं मिटती,
अतृप्ति आग को हवा देती है,
एक दिन आत्मघात होगा
पर्णरहित वृक्ष की तरह
निस्संगता में डूबेंगे
अति सम्वेदी नर-नारी,
मिट्टी के कलसे फूटेंगे
फूलदानी के फूल काग़ज़ हो जाएँगे
घास पर पड़ी ओस लौट जाएगी
चाँद की ओर।
ऐसे कुल में उसका जन्म हुआ
जिसमें स्वाभिमान की रीति नहीं थी।
उसे पता नहीं उसके माँ-बाप कौन हैं
किससे रिश्तेदारी है सचमुच
कौन भरोसे का पक्का दोस्त है;
उसकी रूपवती प्रेमिका
रतिकला - पारंगत है
और वह इतनी कामवाली चीज़ों के बीच
बिना काम का, तुच्छ।
जहाँ कोई रीति नहीं है
उच्छृंखलता ही रीति है जीवन की।
अश्लीलता के अपराध का दोषी
वह रोज़ जूठन खाता है
गन्तव्य-हीन
चलता रहता है राजपथ पर
लैम्पपोस्ट उसे नमस्कार करते हैं
सफ़ेद, भीगी चाँदनी,
धूल की आँधी से घायल रात,
प्रिय मन्त्रीगण,
उनके यन्त्रीगण,
बिजली और खाद्य की कमी पर
सलाह देने वाले सलाहकार,
दलाल मित्रगण,
सम्माननीय सेडिस्टों का दल,
फिल्मांकन का आखिरी सीन
जब अकेला चलता होता है
तभी याद आता है सब।
बहुत साल पहले
ऐसा ही एक बगावती ख़याल
उसके मन में आया था
उसी दिन उसने अपने मालिक को काट खाया था
और क़दम रखे थे
अज्ञात के अन्तहीन पथ पर;
प्रिय पाठक, मेरा अजाना नायक
दरअसल एक आवारा कुत्ता है।

समीर ताँती की कविता : धूलिर धुमुहा, हेंता जोनाक, आरु एजन असिन नायकर कथा (ধুলিৰ ধুমুহা ,শেঁতা জোনাক আৰু এজন অচিন নায়কৰ কথা)का अनुवाद
शिव किशोर तिवारी द्वारा मूल असमिया से अनूदित