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धूल मिट्टी की चमक कागज पे रखकर देखता है / डी. एम. मिश्र
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धूल मिट्टी की चमक कागज पे रखकर देखता है
गॅाव मेरा, शहर से दूरबीन लेकर देखता है।
स्वाद सूखी रोटियों का, भात का होता है कैसा
चैम्बर में बैठकर वो जूस पीकर देखता है।
वो बड़ा नेता है उससे आप बच करके ही रहिये
वो दरो -दीवार तक कुर्सी को लेकर देखता है।
चार छै दस के अलावा कौन उसका साथ देगा
किन्तु वो ख़ुद को ग़लतफ़हमी में रखकर देखता है।
गाँव का वो आदमी बेशक अगूँठा छाप है, पर
आपके सारे घोटाले वो निरक्षर देखता है।
देवता बेशक़ नहीं, पर वो बड़ा इन्सान तो है,
हर किसी का दर्द जो अपना बनाकर देखता है।