ध्रुव प्रदेश की यात्रा / निकअलाय असेयेफ़ / वरयाम सिंह
पलकों के बीच जमें आँसुओं को
आलस हो रहा है लुढ़कने में
चीड़ के पेड़ की सुइयाँ
चुभो दोगे तुम आँखों में।
इस्पात के साँचे में ढाला है मैने हृदय
कमचात्का प्रदेश की ओर भागने के लिए
ताकि सुंदरता पर सके तुमसे जुड़ा हर विचार
दूर उत्तर के अंतरीपों और बंजरभूमि में,
ताकि डोलते जहाज के डेक पर
धुल जायँ एक-एक कर सारी शिकायतें,
ऊब और बुढ़ापे की सब प्रेतच्छायाएँ
जहाज के पीछे छूट जायें किसी नाव पर।
बेरिंग सागर में, अखोत समुद्र में
मैं पहला गायक हूँगा साँचे में ढालता इस यात्रा को
चलना सिखाऊँगा तुम्हारे द्वारा आलोकित गीत को
परिलोक जैसी कमचात्का की धरती की ओर।
जहाँ उग नहीं पाते कोई जंगल
जहाँ की ठण्ड को गरमाहट नहीं पहुँचा पाते उत्तर के भाई बंध।
ओ पतझर के दिनों के मित्र
ओ हिंस्त्र नेत्रवाले सहोदर,
हम आये हैं शीत में जमें गीतों को निकालने,
ज्वाला निकालने जमें हुए सूर्य से।
हम नतमस्तक होते हैं उस जगह
जहाँ सील मछलियों ने गले लगाया बर्फ को
स्वागत करेंगे श्वेत भालुओं का
अपने हाथों रोटी और नमक से।
ओ ध्रुव प्रदेश की लोमड़ियो,
तुम्हारे लिए हम लाये हैं बहारों के कुछ नमूने,
उन जिज्ञासु गिलहरियों को
मालूम हो जायेंगी हृदय की खाली जगहें
जब अलास्का की यात्रा के लिए
हम बैठ रहे होंगे जलयान में।
मूल रूसी भाषा से अनुवाद : वरयाम सिंह
लीजिए, अब यही कविता मूल रूसी भाषा में पढ़िए
Николай Асеев
Поездка на полюс