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नंगरिहा / अनूप रंजन पांडेय
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बड़े फ़जर ले चले नंगरिहा, जोते बर हे खेत।
बेरा के ठढियावत संगी, मुसुवा कूड़े पेट॥
मुसुवा कुदय पेट, बइठ बंभरी के छईहा।
टूरी बासी लानय, खिंचय सरपट सईया॥
कह पांडे कविराय, नगरिहा, धनतोर जांगर
जब देखौं तो फटहा निगौटी, खांध म नागर