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नई भाषा / निज़ार क़ब्बानी
Kavita Kosh से
तुम्हारे लिए मैं अलग-ही शब्द लिखना चाहता हूँ
एक नई भाषा गढ़ना चाहता हूँ सिर्फ़ तुम्हारे लिए
जो तुम्हारे बदन को समो ले
और मेरे प्यार को ।
बहुत दूर चला जाना चाहता हूँ मैं शब्दकोष से
और अपने होंठ पीछे छोड़ जाना चाहता हूँ ।
इस मुँह से तंग आ गया हूँ मैं,
अब कोई दूसरा मुँह चाहता हूँ ।
ऐसा जो कभी चेरी का पेड़ बन जाए,
कभी माचिस की डिबिया ।
जिस में से शब्द ऐसे निकलें
जैसे पानी में से जलपरियाँ,
जैसे जादूगर की पिटारी में से सफ़ेद कबूतर ।