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नई सुबह / किरण मल्होत्रा
Kavita Kosh से
पलकों पर
सजे सुनहरे सपने
पत्तों पर
गिरे चमकीले मोती
चांदनी पर
खिले सफ़ेद फूल
हमें बताते हैं
हमारी भूल
ये सब
बिखर जाते हैं
कुछ पल में
विचार नहीं बदलते
जीवन-भर
जीवन नदी है
कहीं नहीं रूकती
चाँद-सूरज
कभी नहीं थकते
जैसे रूका पानी
असहनीय हो जाता है
वैसे रूके विचार
अमानवीय हो जाते हैं
विचारों को
सपनों की तरह
टूटने दो
मोतियों की तरह
बिखरने दो
फूलों की तरह
झरने दो
तभी हमें
अहसास हो पाएगा
एक नई सुबह का