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नए साल पर भी शरारत हुई है / सुजीत कुमार 'पप्पू'

नए साल पर भी शरारत हुई है,
पता है ज़रा-सी मुहब्बत हुई है।

ख़यालों में बातें बहोत हुई जिनसे,
मुलाकात की अब इजाज़त हुई है।

ज़ुबाँ लड़खड़ाने लगी है ख़ुशी से,
मुहब्बत की जबसे हरारत हुई है।

अभी से हुआ हाल कैसा हमारा,
ये कैसी बेताबी में उल्फ़त हुई है।

अच्छी थी भली थी तन्हाई हमारी,
मगर क्यूं तुम्हारी ज़रूरत हुई है।