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नगपति की पुकार / सोना श्री
Kavita Kosh से
जागो वीरों समय आ गया
नगपति पुनः पुकार रहा
घर के अंदर, घर के बाहर
दुश्मन नित ललकार रहा
वीर शहीदों के बलिदानों
से आजादी पाई है
मान न जाए मातृ-भूमि का
तुमको आज दुहाई है
कर्ज है हम सब के माथे पर
भारत माँ के लाल हैं हम
युद्ध बाँकुरे महराणा-से
काल हैं हम, विकराल हैं हम
थप्पड़ सैनिक के गालों पर
शोणित क्यों न उबलता है
चुप रहना, सहना ये नित-दिन
मेरे मन को खलता है
जिनसे दसों दिशाएँ रक्षित
उनका तो यह मोल नहीं
तुम्ही कहो क्या चुप रहने से
बदला देश-भूगोल नहीं
अब भी अगर नहीं सुधरेंगे
रोयेगा इतिहास पुनः
बार-बार दिल छलनी होगा
होगा हृदय हताश पुनः
इसीलिए कह रहा नगपति
दारुण-करुण पुकार सुनो !
अब स्वदेश में देश-हितों पर
हो न कोई यलगार, सुनो !