भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नगपति की पुकार / सोना श्री

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जागो वीरों समय आ गया
नगपति पुनः पुकार रहा
घर के अंदर, घर के बाहर
दुश्मन नित ललकार रहा

वीर शहीदों के बलिदानों
से आजादी पाई है
मान न जाए मातृ-भूमि का
तुमको आज दुहाई है

कर्ज है हम सब के माथे पर
भारत माँ के लाल हैं हम
युद्ध बाँकुरे महराणा-से
काल हैं हम, विकराल हैं हम

थप्पड़ सैनिक के गालों पर
शोणित क्यों न उबलता है
चुप रहना, सहना ये नित-दिन
मेरे मन को खलता है

जिनसे दसों दिशाएँ रक्षित
उनका तो यह मोल नहीं
तुम्ही कहो क्या चुप रहने से
बदला देश-भूगोल नहीं

अब भी अगर नहीं सुधरेंगे
रोयेगा इतिहास पुनः
बार-बार दिल छलनी होगा
होगा हृदय हताश पुनः

इसीलिए कह रहा नगपति
दारुण-करुण पुकार सुनो !
अब स्वदेश में देश-हितों पर
हो न कोई यलगार, सुनो !