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नग्नता और प्रेम / मोहिनी सिंह
Kavita Kosh से
मुझे लगता है क्रूरता का लिबास है प्रेम
या शायद क्रूरता की कोठरी का दिया है प्रेम
और मेरी आँखों को मिल गई है क्षमता
सब कुछ नग्न देखने की ।
मेरी साँसे ही बुझा देती हैं हर दिया अँधेरा नाच उठता है।
तभी तो मुझे दिखाई देता है एक जोड़ा प्रेम में लिप्त
लड़का लड़की को फूल सा बांहों में उठाये
दोनों खिलखिलाते
दुलराते एक दुसरे को
कि अचानक
लड़का छोड़ देता है लड़की को
लड़की बिखर जाती है कांच की तरह ।
छर छर बहता रक्त
तड़पती लड़की
और खिलखिलाहट बन गई है अट्टहास लड़के का।
अब सब नग्न है और क्रूर है।
हाँ मैं ऐसे ही स्वप्न देखती हूँ
जब सच को स्वप्न मान लेती हूँ।