भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नजरिया जोरे जुरै चित फोरे / बघेली
Kavita Kosh से
बघेली लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
नजरिया जोरे जुरै चित फोरे बड़ा दुःख होय
अरे ओ प्यारे तोरे कारने कि होइ चिल्हिया मड़रांव
कहौ तो छतिया लगि रहौ कि लै उड़ि जाउँ अकाश
नजरिया जोरे जुरै चित फोरे बड़ा दुःख होय