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नज़र तुम न आये नज़ारों के मारे / बलबीर सिंह 'रंग'
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नज़र तुम न आये नज़ारों के मारे
न हम देख पाये शरारों के मारे।
तलातुम ने लहरों को छेड़ा नहीं था,
मगर कश्ती डूबी किनारों के मारे।
फ़लक़ से न बिजली गिरी आशियाँ पर,
चमन हिल गया पायदारों के मारे।
रक़ीबों से शिक़वा शिकायत नहीं है,
परेशान है ‘रंग’ यारों के मारे।