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नज़र न आओ तो जीना मुहाल करती है / मनोज मनु

नज़र न आओ तो जीना मुहाल करती है
निगाह दिल से हज़ारों सवाल करती है
 
दूर रहकर भी नज़र में बसाए रखती है
ख़ास लम्हात का ये कितना ख़्याल करती है
 
अजीब शय है नज़र बस निगाह भर में ही
परखना देखना क्या-क्या कमाल करती है
 
भेज के दूर माँ अपने जिगर के टुकड़े को
नज़र भर देखने का खुद मलाल करती है
 
छुरी की, तेग़ की, खंजर की बात क्या करनी
नज़र में ख़ुद है वो कूवत हलाल करती है