भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नज़र न आना / सुदर्शन वशिष्ठ

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

आप तो नज़र ही नहीं आते
नहीं कहा जाता दोस्तों से
दुश्मनों से भी नहीं पूछा जाता
आप तो नज़र ही नहीं आते।

यह पूछा जाता है उनसे
जो न दोस्त हैं न दुश्मन
आज वही लोग अच्छे हैं भले हैं
जो न दोस्त हैं न दुश्मन
जो हंस कर देते हैं दस रुपये की चेंज
पूछने पर समझाते हैं रास्ता
दुर्घटना पर पहुंचाते हैं अस्पताल
मरने पर देते हैं कन्धा।

बड़ी मुश्किल से मिलता है ऐसा इन्सान
जो न दोस्त हो न दुश्मन
                   बस इन्सान हो।
और जिसे पूछा जाए
आप तो नज़र नहीं आते
वह हंसे और हंसता चला जाए।

और नज़र न आना भी
अच्छा है नज़र आने से
नज़र में आने से दोस्त दुश्मन हो जाते हैं
और दुश्मन दोस्त
वैसे कहा तो यह है
जिनके आप दोस्त हों
उन्हें दुश्मनों की क्या जरूरत
यह भी हो सकता है
जिनके आप दुश्मन हों
उन्हें दोस्तों की क्या जरूरत
जो दोस्त हैं दुश्मनी निभाते हैं
जो दुश्मन हैं कभी दोस्ती कर जाते हैं
इसलिये नज़र न आना
अच्छा है नज़र आने से।