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नज़र सरशार उसकी / नसीम अजमल
Kavita Kosh से
मनचंदा बानी के नाम
नज़र सरशार<ref>नशे में डूबी हुई</ref> उसकी ।
फ़ज़ा बेदार<ref>जागती हुई</ref> उसकी ।
बहोत बातें सुनी हैं
सर-ए-बाज़ार उसकी ।
कहाँ कटता मेरा सर
मगर तलवार उसकी ।
मैं छोटा सा नगीना
बड़ी बाज़ार उसकी ।
हवा उसका तकल्लुम<ref>बातचीत</ref>
शफ़क दस्तार<ref>पगड़ी</ref> उसकी ।
सुनी है मैंने आहट
हज़ारों बार उसकी ।
कहानी कह रही है
निगाह-ए-यार<ref>महबूब कि दृष्टि</ref> उसकी ।
नज़र आई वो सूरत
गिरी दीवार उसकी ।
फ़ज़ा इक शबनमी सी
बदन के पार उसकी ।
यहाँ क्या मैं नहीं हूँ ?
ये सब पैकार<ref>लड़ाई</ref> उसकी
अजब हम्द-ओ-सना<ref>तारीफ़</ref> है
सुख़न के पार उसकी ।
दिखा दे कोई 'अजमल'
झलक इक बार उसकी
शब्दार्थ
<references/>