भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नदिया का तीरे-हो-तीरे बाबा / भोजपुरी
Kavita Kosh से
नदिया का तीरे-हो-तीरे बाबा, अइले बरिआते
सेहो सुनि बेटी के बाबा, ठोकले केंवाड़ी।।१।।
खोलू-खोलू आहे बाबा बजर केंवाड़ी,
दुअरा ही अइले बाबा, सजन बाराती।।२।।
कइसे के खोलीं बेटी, बजर केंवाड़ी
दह मोरे कँड़िहें हो बेटी, पुरइन भलु अइहें।।३।।
दह मोरे कँड़िहे हो बेटी, पुरइन मलु अइहें,
बसली चिरइया हो बेटी, सेहो उड़ि जइहें।।४।।
दह तोरे पलुहो रे बाबा, पुरइन हालदी हे
उड़लो चिरइया हो बाबा, सेहो बसि जइहें।।५।।