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नदियों का मिलन / नरेश अग्रवाल

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दो नदियों का मिलना कितना अच्छा लगता है
जैसे दो दिलों का मिलन हो, यह
किसी एक का झुकना नहीं
बल्कि आत्म समर्पण एक-दूसरे के लिए
और बहती हैं यहां दो नदियां एक होकर
अपनी तीव्र रफ्तार से
और लबालब होकर भर जाते हैं
उनके तट जल से।
चाहे कितना ही सुहावना मौसम क्यों न हो यहां का
कोई मतलब नहीं नदी को इससे
उसका काम ही है बहते जाना
बढ़ते जाना समुद्र तल की ओर
और जहां संगम हो तीन नदियों का
कितना सारा बल होगा उस धारा में
यह बात वहां के बाशिंदे ही जानें ।