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नदी और बादल / आभा पूर्वे
Kavita Kosh से
नदी से लिपटा हुआ था
बादल
एक अरसे से।
आज बादल
नदी का दामन छोड़
भागा जा रहा है
नदी ने करवट बदली
बादल को देखा
और उसे देख मुस्कुरा पड़ी
मन ही मन सोचाµ
ठीक है जाओ
तुम जहाँ जाना चाहो
आखिर तुम्हें आना है
पुनः मेरे ही करीब
क्योंकि तुम्हारा अस्तित्व
अन्ततः मुझमें ही
व्याप्त है।