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नदी किनारे / मनोज चौहान

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एक रोज मैं यूं ही,
बैठा नदी किनारे,
सोचता रहा,
अनायास ही,
बहुत देर तक l

कल – 2 करता,
वह नदी का पानी,
झुमती हुई वह,
हर एक लहर,
कर रहे थे आनंदित,
वातावरण को l

दे रहे थे संदेश ,
कर रहे हों प्रेरित ,
जैसे इन्सान को,
कि जिंदगी नाम है,
जिन्दादिली से जीने का l

स्वच्छता और निर्मलता लिए ,
पुकार रहे थे वे ,
कि जरूरत है तुम्हें ,
आत्ममंथन की ,
निकाल दो सभी,
कपटपूर्ण और रूग्ण विचार,
अपने हृदय से,
और निर्मल हो जाओ,
मेरी तरह l




फिर जीओ जीवन को,
एक नए विचार और,
नजरिये के साथ l

और भी कहता रहा,
बहुत कुछ ,
वो नदी का पानी,
गुनगुनाती रही,
वह हर एक लहर l

यूं ही बैठा मैं,
उस रोज नदी किनारे,
सेाचता रहा बहुत देर तक,
उन लहरों को देखते हुए l