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नदी की धार मोड़ दो तो कोई बात बने / डी. एम. मिश्र
Kavita Kosh से
नदी की धार मोड़ दो तो कोई बात बने
हमारे गाँव में लाओं तो कोई बात बने।
हमारे गाँव से दिल्ली तुम्हारी दूर बहुत
यहाँ से राज चलाओं तो कोई बात बने।
गरीब आदमी तो कोशिशें कर–कर के थका
नसीब उसका बदल दो तो कोई बात बने।
कहाँ ज़रूरी है ये हर ज़मीन समतल हो
जिगर पहाड़ का काटो तो कोई बात बने।