नदी के घाट पर जब तुम मिले थे
हृदय में स्वप्न के सरसिज खिले थे
सतह पर फेन हिलता था हवा से
वहाँ, नीचे,हमारे दिल हिले थे
वो क्रन्दन था नहीं व्यायोग ही भर
विपर्यय के शरों के सिलसिले थे
अनुष्टुप थरथरा कर रह गया था
नदी के घाट पर जब तुम मिले थे