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नदी गोमती - शहर लखनऊ / कुमार रवींद्र

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नदी गोमती
शहर लखनऊ
हम बाशिंदे उसी शहर के
 
बीच-शहर की तंग गली में
पुश्तैनी अपना मकान है
पहले ठाकुरद्वारा थी वह
बनी सामने जो दुकान है
 
याद हमें आते दिन
रह-रह
ठेठ गरमियों की दुपहर के
 
महफ़िल जमती थी घर में ही
दादी थीं शौक़ीन ताश की
उनसे ही थी सुनी कहानी
हनूमान के बराह्मपाश की
 
कई बार
उनकी गोदी में
दुबके थे राक्षस के डर से
 
आंगन में था पेड़ आम का
कटवा दिया भाई ने परसों
पता नहीं कितने ही पंछी
वहीं रहे थे बरसों-बरसों
 
कितने ही थे
मौसम दिल के
रातों की मीठी जगहर के