भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नदी नहीं हो सकती आदमी / केदारनाथ अग्रवाल

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नदी नहीं हो सकती
आदमी
न आदमी
हो सकता है नदी
अब भी आदमी अभी आदमी है
नदी अब भी नदी है
बदला जमाना नहीं बदला
न प्रकृति बदली
न पुरुष
बदला
बदला परिवेश
यों नहीं बदला
कि आदमी और नदी
एक हों
अनस्तित्व में।

रचनाकाल: २९-१०-१९६७