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नदी पर लड़की / अनिल जनविजय
Kavita Kosh से
मेरी आँखों में बसी है
गीले कपड़ों में घर लौटती
शर्मीली लड़की की तस्वीर
गाँव के निकट बहती नकटिया नदी
और उस लड़की के साथ
घर बसाने की स्वप्निल चाह में डूबी
मुहल्ले के तमाम लड़कों की शक़्ल
तेरे होंठ फूल हैं
जिनमें मिट्टी का उजाला जगमगाता है
तेरी आँखें आकाश
जो मुझे रात को सहलाता है
तेरे चुम्बन में मिट्टी की ताक़त है
ओ नदी किनारे घाट पर नहाती हुई लड़की
तेरा हृदय मेरा घर है
तेरी लबालब आँखें मेरा प्यार
तेरी आँखों में कुलबुलाता सपना
तेरे भीतर सुगबुगाता संघर्ष
अब मेरा है
तेरा दुख, बड़ा और गहरा दुख,
शान्त और उदास दुख, गम्भीर दुख
अब मेरा है