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नदी माँ / कल्पना दुधाल / सुनीता डागा

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एक-दूजी में घुली-मिली
हज़ारों वर्षों से यहाँ पर
फलती-फूलती रहीं तुम
लाखों दिन उगे और डूब गए
उनमें से कौन-सा वह पल था
जिसने महसूस कराया अकेलापन
और तुम्हारे आगमन का स्वप्न देखा धरती ने ?

बर्फ़ से पिघलकर निकली तुम्हारी राह
बढ़ा कल-कल करता झरना
नाला बना और तब्दील हो गया तुममें
तुमने बनाई पहली खाईं
और दो किनारों के बीच
निरन्तर तुम बहती रहीं

धरती के प्रथम जीव की प्रथम प्यास
क्या महसूस की थी तुमने
जो ममतामय अंजुली से बूँद-बूँद से
बहती रही तुम देह से
और सिखाते हुए तैरने की कला
समाती रहीं हर जीव-सजीव में

तुम नील बनी
बनी अमेज़ोन
इंडस गंगा जमुना गोदावरी बनी तुम
न कहलाई मात्र संस्कृतियों का उद्गम
इस क़दर घुल-मिल गई उनमें कि
तुम्हारे और इनसानों के नाम भी हो गए एक

उफान और शान्ति के दरमियान का
संवेदनशीलता का स्तर
घटा है या बढ़ा हुआ
नहीं बता पाती हूँ मैं
पर महाप्रलय का रूप धारण कर
कौन-सा प्रतिशोध ले रही हो नदी माँ
और पश्चाताप से भरी तुम
पुनः शान्त होकर
जब बुलाती हो समीप
तब क्या स्मरण होता है तुम्हें
तुम्हारे आसरे बसी हुई इनसानों की पहली बस्ती का

इस दुनिया के सुख-दुख का मोह न हो
इसलिए बहती हो तुम धरती की कोख के भीतर ही भीतर
तब इनसानों ने नहीं जतन किया है पानी को
पानी की तरह
क्या इस ग्लानि से भर जाती हो तुम

नदी उपनदी बनकर सागर में विलीन होते हुए
सारे कुनबे को बिसार देती हो ख़ुशी से
या होती है कोई पीड़ा तुम्हें
कहो न नदी माँ
बहती हो तुम मेरे भीतर से
और मैं तुम्हारी धारा से
दोनों के ही अन्तिम प्रवाहों के सूख जाने पर
कहाँ ढूँढ़ना होगा उद्गम को
कैसे खोदना होगा ख़ुद को
कैसे पहुँचना होगा अपने भीतर की नमी तक
कहाँ ढूँढ़ने होंगे सफ़र के साथी
बह-बहकर मुलायम बनने से पहले का
वह खुरदरापन
कहाँ ढूँढ़ना होगा उसे
इस साथ भरे सफ़र के
अन्तिम पड़ाव पर
मेरी अस्थियों को अपने ममतामय प्रवाह से
बहा ले जाओगी न धीरे-धीरे ?

मूल मराठी से अनुवाद : सुनीता डागा