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नदी मेरे घर का पता भूल जाएगी-4 / इदरीस मौहम्मद तैयब

परती बढ़ रही है
चेहरों को भूलने की वह लपट
जिनकी यादें मेरे दिल पर खुदी हैं
और वहाँ एक नदी मेरे साथ निरन्तर
बहते हुए
अब मेरे घर का पता भूल जाएगी
क्या यह नदी जंगलों को छोड़ देगी
और पक्षियों की तरह अपने प्रेमी से मिलने
दूर चली जाएगी
या फिर यह मर जाएगी
घर की याद से आत्महत्या
क्या लपट अभी भी मुकाबला कर सकती है
या...
यहाँ है यह
फूटती हुई
चीख़ की नदी ।

रचनाकाल : 27 मार्च 1979

अंग्रेज़ी से अनुवाद : इन्दु कान्त आंगिरस