Last modified on 2 जून 2020, at 04:30

नदी स्तुति गाती है / बैर्तोल्त ब्रेष्त / अशोक वाजपेयी

नदी स्तुति गाती है।
वृक्षों में तारे।
थाइम और काली मिर्च की गन्ध।

हलकी-सी हवा से
खिलती हुई हमारी भौंहें
हम बच्चे हैं, यह ईश्वर का उपहार है।

घास नरम है : स्त्री बिना किसी कटुता के
मोहक झाड़ियाँ सब कुछ को आनन्दपूरित करती हुई :
जो ’हाँ’ कहेंगे उनके लिए सुख सुनिश्चित है।

तुम कभी
इस जगह को
छोड़ना नहीं चाहोगे।

अँग्रेज़ी से अनुवाद : अशोक वाजपेयी