भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नदी / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
जीवन के आधार नदी
मछली के संसार नदी
जल ही नै मोतो तक दै छै
की नै करै उपकार नदी।
पार उतारी दै नावोॅ केॅ
करै कहाँ इन्कार नदी।
भले बांध बांधी दै कोय्यो
रोकै नै रफ्तार नदी।
हमरे सबके करतूतोॅ सें
बनलोॅ जाय छै धार नदी।