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नदी / हरीश भादानी
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नदी
ओ रेत की नदी
थम, जरा सी थम
देख तो ले मुझे
हमशक्ल तो नहीं
हम आहैग हूं ही मैं,
एक दरिया में
समाना है मुझे भी
तेरी तरह मुझको भी होना है,
एक तनमन का विराट
फिर अकेले
कहाँ भागे जा रही हो रेत की नदी।
जून’ 82