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नफ़रत, वहशत, दहशत का सैलाब दिखाई देता है / श्याम कश्यप बेचैन

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नफ़रत, वहशत, दहशत का सैलाब दिखाई देता है
सारा हिन्दुस्तान दुख भरा ख़्वाब दिखाई देता है

कुछ करने के लिए, नहीं करता है यहाँ पहल कोई
कुछ कहने को, हर कोई बेताब दिखाई देता है

बूँद-बूँद से जिसे बनाया गया समन्दर, आज वही
सड़ी मछलियों का गंदा तालाब दिखाई देता है

कैसे किसी शरीफ़ की चमड़ी बच पाएगी सच कहकर
जब झूठों के हाथों में तेज़ाब दिखाई देता है

नैतिकता, जनहित, अनुशासन, देशप्रेम सेवा का व्रत
जाने कैसा-कैसा मुझको ख़्वाब दिखाई देता है

ढोर सरीखे, शाम लौटते वक़्त अंधेरी गलियों में
अपना ही साया हमको क़स्साब दिखाई देता है