नमक और धातु / लियू लिब्सेकल / श्रीविलास सिंह
किनारे की ओर “स्वतन्त्रता”
भोथरी हो जाती है —
एक घृणित शब्द
हमने टेलिविज़न देखा और भीख माँगी
चीज़ों की अपने पास रखने के लिए
साँस और "शान्ति"
और जब एक-एक कर टपकने लगे लोग
सड़क पर
भावहीन और विचारमग्न चेहरे
लहराते हुए ज्वार के खेतों की भाँति
साथ-साथ हिलते
हवा से,
सूरज है प्रदत्त प्रकाश
हमने दरवाज़ों में ताले लगाए और
पहरा दिया
पर्दों पर
बहाते हुए ठण्डा पसीना, ऐतिहासिक पसीना
हमने देखा धरती को फैलते हुए
मानों नींद में करवटें लेती हुई माँ
वीभत्स हिंसा का स्वाद
अभी भी डंक-सा मारता है उसके
बच्चों के होठों पर
विस्फोट से पूर्व की शान्ति
अभी भी बजती है उनके कानों में
झण्डे लहरा रहे
“भीतर आने दो अच्छा प्रकाश” हम चिल्लाए
पोंछते हुए अपने भय और अविश्वास को
जन्म के समय के निशानों को
“वह हमारी है, वह पूरी की पूरी हमारी है”
हमने अपने शरीर मिला दिए उसके शरीर से
त्वचा, जो अमिट है, अब भी रोती है अपरिमित मात्रा में
नमक और धातु
हम पहरे पर हैं, भूले न कोई।
अँग्रेज़ी से अनुवाद : श्रीविलास सिंह
लीजिए, अब यही कविता अँग्रेज़ी भाषा में पढ़िए
Liyou Libsekal
Salt and Metal
At the edge, “freedom” twists—
a filthy word
we watched the television and begged for
things to keep
breath and “peace.”
And when the bodies trickled onto the street
the faces stark, reflective
shimmering like fields of teff, swaying together
in the wind, the sun
the given light
we latched the doors and kept vigil
at the screen
sweating cold, historic sweat
we watched the land stretch,
a mother shifting from sleep
the taste of gore
still stinging between her children’s lips
the stillness before eruption
still lapping at their ears
the flags billowed.
“Let the good light in!” We howled
wiping ourselves of dread and disbelief
of the markings of birth,
“she is ours, she is all of ours!”
We pull our bodies close to hers
skin, indelible, still weeping eons of
salt and metal
we keep watch, lest any forget.
© June 2016, Liyou Libsekal