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नमक / केशव तिवारी
Kavita Kosh से
अब प्रेमियों के चेहरे पर
वह नमक कहाँ
प्रेयसियों के चेहरे पर भी
पहले-सी लुनाई नहीं
था कोई वक़्त जब नमक का हक़
सर देकर चुकाया जाता था
सुना है यूनान में तो
नमक के लिए
अलग से मिलता था वेतन
एक बूढ़ा हमारे यहाँ भी था
जो नमक की लड़ाई लड़ने
पैदल ही निकल पड़ा था
हमें कहाँ दिखता है
फटी हथेलियों
और सख़्त चेहरों से
झरता हुआ नमक ।