भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नमक / मंजूषा मन

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

दाल में
चुटकी भर
नमक की घट बढ़
पल में पहचान लेते हो
तुम!!!

फिर क्यों जीवन तक
साथ रहकर भी
नहीं देख पाते
तुम
मेरे आंसुओं का
नमक।