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नमस्कार स्वीकारोॅ / अनिरुद्ध प्रसाद विमल
Kavita Kosh से
जबेॅ तोंय
एक बांस आरो ऊपर होय जैभोॅ
तबेॅ तोरा देखाय पड़थौं
हमरोॅ बौनापन
कि हम्में कŸोॅ छोटोॅ होय गेलोॅ छियै तोरा सें
कि हम्में आँख उठाय केॅ भी
तोरा देखेॅ नै पारौं
हमरा अचरज होय छै
हम्मीं तोरा बनैलिहौं
आरो हम्मी अŸोॅ छोटोॅ केनां होय गेलियै
ऐ हमरोॅ आपनोॅ
बाढ़ सें उबडूब
पानी में सड़ी रहलोॅ फसल रोॅ
नमस्कार स्वीकारोॅ
बाढ़ोॅ में भांसी रहलोॅ लोगें
तोरा बोलाय छौं
नांगटोॅ सड़क पर खाड़ोॅ
आपनोॅ कानतें-बिलखतें बुतरू साथें
पानी, कादोॅ, कीचड़ में सनलोॅ हाथें
तोरा खोजै छौं ?
उपरोॅ सें नीचें
जमीनोॅ पर आपनोॅ गोड़
कहिया धरभेॅ तोंय ?
यहू हालतोॅ में जबेॅ कि
हम्में जानै छियै, तोंय नै एैभेॅ
हमरोॅ नमस्कार स्वीकारोॅ।