भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नम मिट्टी पत्थर हो जाये ऐसा कभी न हो / डी. एम. मिश्र

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

नम मिट्टी पत्थर हो जाये ऐसा कभी न हो
मेरा गाँव, शहर हो जाये ऐसा कभी न हो।

हर इंसान में थोड़ी बहुत तो कमियाँ होती है
वो बिल्कुल ईश्वर हो जाये ऐसा कभी न हो।

बेटा, बाप से आगे हो तो अच्छा लगता है
बाप के वो ऊपर हो जाये ऐसा कभी न हो।

मेरे घर की छत नीची हो मुझे गवारा है
नीचा मेरा सर हो जाये ऐसा कभी न हो।

खेत मेरा परती रह जाये कोई बात नहीं
खेत मेरा बंजर हो जाये ऐसा कभी न हो।

गाँव में जब तक सरपत है बेघर नहीं है कोई
सरपत सँगमरमर हो जाये ऐसा कभी न हो।

सागर जितनी पीड़ा मन में, धैर्य भी उतना ही
मेरा दर्द मुखर हो जाये ऐसा कभी न हो।