भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नयनो की धरती / सुरेश कुमार शुक्ल 'संदेश'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन सरिता रेतीली है।
किन्तु चाँदनी चमकीली है।

आग नहीं जलती चूल्हे में,
किन्तु पेट में गर्वीली है।

बरस उठे यादों के बादल,
नयनों की धरती गीली है।

सपनों के सोपन ढह गये,
मुखडों की रंगत पीली है।

बंजर सा अपनत्व हो गया,
छाँह स्नेह की शर्मीली है।

मौन हो गया है युग-उपवन,
कली-कली लगती कीली है।

घर-घर में है आग लगती
जिहुआ माचिस की तीली है।