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नया बाज़ार / प्रेमशंकर शुक्ल
Kavita Kosh से
नया बाज़ार है
बेच रहा है
आवश्यकता और चीज़ें साथ
धकियाता बढ़ रहा आगे
आँखों में झोंक रहा इम्पोर्टेड धूल
चकाचौंध है जिसमें चहुँओर
नया बाज़ार है
नया बाज़ार है
महीन चतुराई से कर रहा मिलावट
हमारे मस्तिष्क में।