भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नया मदरसा / प्रभुदयाल श्रीवास्तव
Kavita Kosh से
अभी खुला है नया मदरसा
नहीं हुआ है ज़्यादा अरसा,
अभी खुला है नया मदरसा।
हिन्दी उर्दू अंग्रेज़ी भी,
के जी वन है, के जी टू भी।
इसके आगे पहला दर्जा।
मिलती स्वाद भरी तालीमें।
जैसे मिलती शक्कर घी में।
होती ज्ञान पुष्प की वर्षा।
मानवता का पाठ पढ़ाते।
मिलजुल कर रहना सिखलाते।
जन-जन में यह होती चर्चा।
जाति धर्म सब करें दुहाई।
मिल कर रहना ही सुखदाई।
बाँट रहे घर-घर यह पर्चा।