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नया यौवन / महेन्द्र भटनागर

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आत्म-निर्भरता, अमिट विश्वास,
अद्भुत धैर्य से
शोषित, दमित, वंचित, दुखी
जगकर बग़ावत के लिए तैयार हैं !
अब दासता का बोझ
पल भर भी नहीं स्वीकार है !

बरसों पुराने बंध ढीले हो गये,
ख़ूनी विरोधी राक्षसों के
लाल फूले गाल पीले हो गये !
साम्राज्यवादी शृंखलाएँ लौह की —
जिनने जकड़ इंसान को
दम घोंट देने का
रचा षड्यंत्र था,
जनतंत्रवादी शक्तियों की चोट से,
स्वाधीनता के प्रज्वलित अंगार से,
हर ग्रंथि से
हर जोड़ से
अब टूटती जातीं सभी !

जंगबाज़ों
ज़िन्दगी के दुश्मनों की टुकड़ियाँ
फैली हुई हैं जो
धरा के वक्ष पर कुछ इस तरह
जिससे कि लेने ही नहीं देतीं
कभी साँसें खुली;
जन-शक्ति के
उत्साह के भूकम्प से निर्मित
दरारों में दबी जातीं
हज़ारों मील गहरी कब्र बन !

जूझा नये युग का नया यौवन
अथक, दुर्दम
कि जो विष तक पचा लेगा,
मरण को सिर उठाने तक नहीं देगा,
अकेला
तप्त लोहे के चने निर्भय चबा लेगा !

यही है वह नया यौवन
बगीचों में रबर के
और फैले जंगलों में
जो मलय के आज उमड़ा है !
यही है वह नया यौवन
कि जो —
जीवित बहादुर मुक्त उत्तर-कोरिया की
हर गली में आज उमड़ा है !
बड़ी मज़बूत डॉलर से बनी
दीवार का उर भेद कर
मैदान में जो चीन के
दरिया सरीखा बाढ़-सा छा आज फैला है !
कि इण्डोचीन की लहरें
उसी के रक्त से खौलीं !
जहाँ के नौजवानों के गलों से
झर रही विद्रोह की बोली !
यही है वह नया यौवन
कि जो नव-एशिया के हर मनुज के
चेहर पर आज दमका है !
सघन काले भयावह बादलों को चीर कर
बिजली सरीखा मुक्त चमका है !

अमित-पुरुषार्थ,
अविजित-शक्ति
उज्ज्वल शांति के विश्वास को लेकर
सुखद सुन्दर नयी दुनिया बसाने को
करोड़ों हाथ कसकर
आज जो तैयार है !
जन-शक्ति के सम्मुख
रुआँसा लड़खड़ाता रोष
एटम-बॉम्ब का
बेकार है,
बेकार है !