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नया लगूँगा / दीनानाथ सुमित्र
Kavita Kosh से
जब भी मुझसे मिलो
तुम्हें मैं नया लगूँगा
कभी न होना मुझे पुराना
फूल नहीं मैं सुरभि फूल की
क्षमा नहीं मैं किसी भूल की
आ जाऊँगा, मुझे ओढ़ना
अगर जरूरत हो दुकूल की
जब भी मिलना तू मुस्काना
कभी न होना मुझे पुराना
मौसम नहीं बदलना जानँू
अग्नि-पंथ पर चलना जानँू
जानूँ शूल सेज पर सोना
हर अभाव में पलना जानूँू
मैं ना भूला आँख दिखाना
कभी न होना मुझे पुराना
वंशी कृष्ण कन्हैया की हूँ
ताकत हलधर भैया की हूँ
मेरा बाल न होगा बाँका
दुआ करोड़ों मैया की हूँ
मुश्किल होगा मुझे हराना
कभी न होना मुझे पुराना