भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नया वर्ष / रामगोपाल 'रुद्र'

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लो, नया वर्ष फिर आया, गौरी, नया वर्ष फिर आया।
कुछ हास और कुछ रोदन
ये एक मोह की धूप-छाँह के दो स्वरूप,
माया के ये कौतुक अनूप
जगमग जिनसे जग-जीवन;
गिन जो, जो द्रव्य कमाया, गौरी...

भूलों की भूल कहानी,
कर दूर भूत का ध्यान, लुटा मानापमान,
करना प्रशस्त पथ वर्तमान
कितना कठोर? कल्याणी!
पर मुझे यही मनभाया, गौरी...

क्यों करें भविष्यत् चंचल?
मेरे कर में जब वर्तमान, विधि का विधान,
गति-गत में ताण्डव-तड़ित्तान,
मैं सृष्टि-डमरुधर केवल,
कब देखें विघ्न घबराया? गौरी...

करता विनाश पर त्राटक,
मैं 'रुद्र' तोड़ता दुरित-दुर्ग सोल्लास तूर्ण,
करता विकीर्ण दृग-अग्नि-चूर्ण,
रचता नवीन-युग-नाटक;
किसने न मुझे सिर नाया? गौरी...