भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नया स्वर / चन्द्रनाथ मिश्र ‘अमर’

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

एक नया स्वर बजता है
मेरे अन्तर के तार में
जल्द सुनाई पड़ने वाला
है सारे संसार में
जिसे हृदय मिल सका नहीं
कैसे समझे वह रागिणी
कैसे उसकी साँसों को
छू दे कविता अनुरागिणी
छोटी सी है परिधि
उसी के अन्दर जो बेचैन है
सिसक रही है जिसके
अन्तर में करूणा हत भागिनी
उसे ध्वस्त करने को मेरा
स्वर समझो अंगार है
घूम रहा है धरती पर जो पशु
मानव के आकार में
एक नया स्वर बजता है
मेरे अन्तर के तार में
जल्द सुनाई पड़ने वाला
है सारे संसार में
औरों की उन्नति से तिल-पिल
जलकर अब जो राख है
स्वयं अनीति-कुशल औरों पर
नैतिकता की साख है-
जमा रहा, ऐसे पापी को
समझाओ मत आज तुम
सौ, हजार क्या, इनकी संख्या
जग में लाखो लाख है
अनुशासन का गला घोंटता
अनुशासन के नाम पर
उसे डुबा देगा मेरा स्वर
चिन्ता की मझधार में
एक नया स्वर बजता है
मेरे अन्तर के तार में
जल्द सुनाई पड़ने वाला
है सारे संसार में
समझ सका जो स्वयं नहीं
किसी की प्रतिभा भी अनमोल है
बाहर की ही नहीं, हृदय की
आँखें भी जब बन्द हैं
समझ नहीं पाता सचमुच यह
सारी दुनिया गोल है
जो सिद्धान्त बघार रहा है
झूठ मूठ हर बात पर
उसे सूला देगा मेरा स्वर
दुख के कारागार में
एक नया स्वर बजता है
मेरे अन्तर के तार में
जल्द सुनाई पड़ने वाला
है सारे संसार में
यह जन-युग सचमुच जनता का
यह तो अपना राज हे
भ्रम के जाल बिछाने वालों
के सिर पर यह गाज है
दलितों का दल मिलकर इसको
उस दल-दल में डाल दे
जिसमें छटपट करता इसका
पूरा एक समाज है
आओ दलितो! मेरे स्वर में
तुम अपना स्वर घोल दो
जो ताकत इस स्वर में है
वह बच न रही तलवार में
एक नया स्वर बजता है
मेरे अन्तर के तार में
जल्द सुनाई पड़ने वाला
है सारे संसार में