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नयी चीज़ें / स्वप्निल श्रीवास्तव

Kavita Kosh से
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पुरानी चीज़ें ख़त्म हो रही हैं

उत्पन्न हो रही हैं नई चीज़ें


एक अदृश्य हाथ समय के समुन्दर से

पुरानी चीज़ों के कबाड़ फेंक आता है


पुराने लोगों कि सिर्फ़ ज़िदें बची हुई हैं

पुरानी चीज़ों के साथ


पुराने लोग नए जूते खरीदते हैं

संभालकर रखते हैं पुराने जूते

पुराने समय को पहनने के लिए


वे जंग खाए संदूकों में तहाकर रखते हैं पुराने कपड़े

मोजे, दस्ताने, अपने मोह


वे धुंधले चश्मों से देखते हैं सभी चीज़ें

लेकिन उनकी दृष्टि से छूट जाती हैं

पत्रहीन गाछ पर उगती हुई कोंपलें