नयी दुनिया की तलाश / कुमार कृष्ण
कैसा लगे यदि तमाम लड़कियाँ
ले आएँ ब्याह कर लड़कों को अपने घर
तमाम पति छोड़ दें हमेशा-हमेशा के लिए
अपने माँ-बाप का घर
जैसे लड़कियाँ छोड़ देती हैं हमेशा-हमेशा के लिए
पिता का आँगन
माँ का चूल्हा-चौका
सावन के झूले
गुड़ियों के घर
रूठ कर मनाने वाले एकान्त कोने
दादी की, अम्मा की सीख भरी गगरियाँ
उछल-कूद करने वाली मोतियों वाली जूतियाँ
तसलीमा नसरीन तुमने तो कह दिया बड़ी आसानी से-
'औरत का नहीं होता कोई देश'
पर शायद तुम भूल गयीं-
औरतें ही चलाती हैं देश
औरतें ही बदलती हैं दीवारों को घरों में
औरतें सीख कर आती हैं माँ के पेट से-
आग और राग की तासीर
औरतें उड़ती हैं चिड़ियों की तरह
एक देश से दूसरे देश तक
औरतें जोड़ती हैं आपस में कई-कई देश
पृथ्वी के निर्माण का बीज हैं औरतें
धरती के विध्वंस का बारूद हैं औरतें
सोचता हूँ-
आख़िर क्यों रोती हैं गहनों से लदी औरतें
पुआल की कथरी में दुबकी औरतें
क्यों सुनाती हैं अपने बच्चों को-,
सिनगी दई, बिरसा मुंडा की कहानियाँ।