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नरभक्षी / नरेश मेहन
Kavita Kosh से
कब तक करोगे
भ्रूण हत्या
कब तक रोकोगे
आदमी के जन्म को?
तुम
धरती पर आ गये हो
इसलिए मानते हो
अपना एकाधिकार।
अपनी भूख की
शांति के लिए
चंद-चिथड़ों
और सिर छुपाने के लिए
एक छत की चिंता में
करते हो
भ्रूण हत्या।
यह मात्र भ्रूण हत्या नहीं
हत्या है
हमारें सम्बन्धों की
हमारी भावनाओं की।
जरा सोचो
जब हम
अगली सदी में जाएंगे
अपने बच्चों के लिए
बूआ-मौसी
कहां से लाएंगे
तोतली आवाज में
कैसे कहेंगे हमारे बच्चे
ताया-ताई
चाचा-चाची
भैया-भाभी
और फिर कहां जाएगा
देवरानी-जेठानी का रिश्ता?
यह सब रिश्ते
खंडहर हो जाएंगे
कालीबंगा की तरह।
फिर
आदमी आदमी कहां रहं जाएगा
मां के ही पेट में
बच्चों को भखने वाला
नरभक्षी हो जाएगा।