भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
नवगुन लगल सनेह, सोहाग रात निंदिया / मगही
Kavita Kosh से
मगही लोकगीत ♦ रचनाकार: अज्ञात
नवगुन<ref>नौगुना, नया</ref> लगल सनेह, सोहाग रात निंदिया।
सेहो पयसी सुतलन दुलरइता दुलहा, जवोरे दुलरइतिन दुलही हे॥1॥
ओते सुतूँ ओते सुतूँ सुगही हे, सोहाग रात निंदिया।
पुरबी चदरिया मइला भेल रे, सोहाग रात निंदिया॥2॥
एतना बचन धनि सुनहु न पयलन, सोहाग रात निंदिया।
चलि भेलन नइहरवा के बाट, सोहाग रात निंदिया॥3॥
घुरूँ घुरूँ<ref>लौट चलो</ref> आहु चलु मोर सेजरिया, सुहाग रात निंदिया।
संखा चुड़िया<ref>शंख की चूड़ी</ref> पहिराय देबो हे, सोहाग रात निंदिया॥4॥
शब्दार्थ
<references/>